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मिटि गई अंतरबाधा | सूरदास के पद | हिंदी साहित्य

मिटि गई अंतरबाधा खेलौ जाइ स्याम संग राधा। यह सुनि कुंवरि हरष मन कीन्हों मिटि गई अंतरबाधा॥ जननी निरखि चकित रहि ठाढ़ी दंपति रूप अगाधा॥ देखति भाव दुहुंनि को सोई जो चित करि अवराधा॥ संग खेलत दोउ झगरन लागे सोभा बढ़ी अगाधा॥ मनहुं तडि़त घन इंदु तरनि ह्वै बाल करत रस साधा॥ निरखत बिधि भ्रमि भूलि पर्यौ तब मन मन करत समाधा॥ सूरदास प्रभु और रच्यो बिधि सोच भयो तन दाधा॥ रास रासेश्वरी राधा और रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण एक ही अंश से अवतरित हुये थे। अपनी रास लीलाओं से ब्रज की भूमि को उन्होंने गौरवान्वित किया। वृषभानु व कीर्ति (राधा के माँ-बाप) ने यह निश्चय किया कि राधा श्याम के संग खेलने जा सकती है। इस बात का राधा को पता लगा तब वह अति प्रसन्न हुई और उसके मन में जो बाधा थी वह समाप्त हो गई। (माता-पिता की स्वीकृति मिलने पर अब कोई रोक-टोक रही ही नहीं, इसी का लाभ उठाते हुए राधा श्यामसुंदर के संग खेलने लगी।) जब राधा-कृष्ण खेल रहे थे तब राधा की माता दूर खड़ी उन दोनों की जोड़ी को, जो अति सुंदर थी, देख रही थीं। दोनों की चेष्टाओं को देखकर कीर्तिदेवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थीं। तभी राधा और कृष्ण खेलते-खेलते झगड़ पड़े।
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तुलसीदास का जीवन परिचय | रामचरितमानस सहित 12 काव्य रचनाएँ |

"तुलसीदास का जीवन परिचय " तुलसीदास जी के जीवन चरित्र का सबसे प्रामाणिक रूप अंतसाक्ष्य के आधार पर ही दिया जा सकता है। उनके जीवन से संबंधित अनेक उक्तियां उनकी रचनाओं में मिलती हैं जो उनके जीवन संबंधि तथ्यों को प्रमाणित करती है। गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1532 ई. अथार्त 1589 विक्रम संवत में कस्बा राजपुर जिला बांदा में हुआ था । इनके पिता का नाम पंडित आत्माराम था और माता का नाम हुलसी था । यद्यपि पिता का नामोल्लेख इनकी किसी भी कृति में नहीं मिलता परंतु माता का उल्लेख इनकी कृतियों में मिलता है - "राम ही प्रिय पावन तुलसी सी। तुलसीदास हितहिय हुलसी सी।" फोटो :  https://assets.roar.media/Hindi/2018/04/Darshan-of-Lord-Rama-to-Tulsidas-at-Chitrakuta-680x583.jpg?fit=clip&w=492 इसका स्पष्ट अर्थ है कि राम की भक्ति तुलसी के लिए माता हुलसी के हॄदय के समान है । अनेक बहिसाक्ष्यों में भी तुलसीदास जी की माता का नाम हुलसी मिलता है जो परम्परापुष्ट है। इनके विषय में एक प्रसिद्ध जनश्रुति यह भी है कि यह अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा हुए थे । अतः इनके ज्योतिषाचार्य पिता

चंद अशआर | शुभम त्रिपाठी | Hindi Urdu Shayari

क्यूँ उम्मीद हो मुझसे के फ़रियाद करूँ जिसे अब याद नहीं मैं क्यूँ उसे याद करूँ क्यूँ रहे मेरा किसी से कोई भी रब्त भला क्यूँ कहा जाऊँ कम्बख़्तों से कमबख़्त भला क्यूँ मुझसे हर दफ़ा वही एक सवाल हो ज़रूरी तो नहीं जो तेरा है वो मेरा हाल हो क्यूँ मेरे कमरे में कहीं भी रखी शराब ना हो क्यूँ आदमी मर जाए यहाँ मगर ख़राब ना हो क्यूँ हर एक ग़म का मेरे हिसाब लिया जाए चोरी बताई नहीं जाती भला क्या किया जाए क्यूँ होती नहीं कोई शक्ल ज़माने की यहाँ क्यूँ कोई हद नहीं होती आज़माने की यहाँ क्यूँ होती है घुटन कोई रोता क्यूँ है जो नामंज़ूर हो सिरे से वही होता क्यूँ है मुझसे मेरे नर्म दिल होने की आस ना कर मेरे किससे सुन ले मगर एहसास ना कर क्यूँ ये उजड़ा घर मेरा मैं आबाद करूँ जिसे अब याद नहीं मैं उसे क्यूँ याद करूँ Writer: Shubham Tripathi

हिंदी कविता : अनकही | Hindi Poem : Untold | Ashish & Mahendra

दिल की गहराइयों से.. जब कोई अनकही बात उफ़ान मारती है, समस्त ह्रदय छलक आता हैं.. पर, मैं उसे दबा देना चाहता हूँ, अपने टूटे हुए दिल के टुकड़ों के नीचे, उन तार तार लम्हों को, लेकिन..वे अमूर्त यादें..उफ़्फ़ जी तोड़ प्रयासों के बावजूद भी विफल हो जाता हूँ, वो बात शब्दों के रूप में, किसी कागज पर बिखर कर, किसी कविता के सांचे में ढल जाती हैं, मुझे नही पता कविता क्या हैं.. लेकिन दर्द महसूस होता है प्रति हर्फ़ में, फिर मैं उन सभी कागजों को जलाकर, राख कर देना चाहता हूँ, ताकि कभी उसके हाथ में ना जाएं ये पन्ने, कभी अहसास ना मिले उसे उसी के दिये दर्द का, बस मैं थोड़ा सा खुश होता कि, इन सबसे बेखबर वो खुश हैं, उसकी खुशी ही तो है सब कुछ, उसे मेरे बिना मुस्कुराते हुए जीना देख कर.. थोड़ी तो तस्सली मिलती है, कि आखिर खुश है वो, मुझे पता है वो मुझे नही देखती.. और शायद देखना भी नही चाहती, पर, मैं उसे दूर खड़ा मुस्कुराते देख, उसकी मीठी मुस्कान से मुस्कुरा देता हूँ, वो बेखबर होती है इन सब से और, मुझे भी पता होता है वो मुस्कुराहट मेरे लिए नही है, पता होता है मुझे कि मेरा दर्द मायने नही रखता

संघ गीत : पूर्ण करेंगे हम सब केशव | देशभक्ति गीत | Purn Krenge Hum Sab Keshav Lyrics | RSS Geet

देह-नश्वर किन्तु कृति के, रूप मे तुम तो अमर हो हर हृदय मे ध्येय-निष्ठा की, तुम्ही उठती लहर हो हे केशव तुम्हे प्रणाम........ पूर्ण करेंगे हम सब केशव ! वह साधना तुम्हारी!! आत्म हवन से राष्ट्र्‌देव की आराधना तुम्हारी निशि दिन तेरी ध्येय - चिंतना आकुल मन की तीव्र वेदना साक्षात्कार ध्येय का हो यह मन कामना तुम्हारी कोटी कोटी हम तेरे अनुचर ध्येय मार्ग पर हुए अग्रसर होगी पूर्ण सशक्त राष्ट्र्‌ की वह कल्पना तुम्हारी तुझसी ज्योती हृदय में पावें कोटी - कोटी तुझसे हो जावें तभी पूर्ण हो राष्ट्र्‌देव की वह अर्चना तुम्हारी!!

हिंदी कविता : अंधकार के आगोश में | आशीष महेंद्र | Short Hindi Poem | Writer Ashish Mahendra

टूटे दिल के टुकड़ों से निकली एक दर्द भरी आह सी कविता अंधकार के आगोश में अंधकार के आगोश में, जब साया भी साथ छोड़ देता है.. ज्ञात तूणीर से निकला एक अज्ञात सा शब्द शर, आकर मेरे सीने में चुभ जाता है, ना निशां दिखता हैं, ना लहू की धार फूटती हैं, कोई सबूत नही होता उस दर्द का... बस बेहद छटपटाहट होती है शब्द नही होते उस अनुभूति को अभिव्यक्त करने को.. फिर मैं छिपा कर खुद को अंधेरो की आड़ में, लेकर छलनी सा हॄदय और उसकी असह्य पीड़ा को.. एक कोने में दुबक जाता हूँ! और वह दर्द फिर मूक आंखों से बहना शूरु होता है! आह..! पता नही सुकून है या दर्द का अहसास..!जब  और फिर घोर निद्रा मुझे अपने दामन में समा देती है..! तब भी मेरे अतीत की स्मृतियाँ जो काले साये की तरह ख़ौफ़नाक है, मेरा पीछा नहीं छोड़ती..! दृष्टिपटल के सामने जाल बुन देती हैं उन काले किस्सों का, जिन्होंने जीते जी कत्ल किया हैं मेरे वजूद का..! अब भाग जाना चाहता हूँ इन उजालों से.. ताकि मेरा ही साया मेरे साथ ना रहें, डूब जाना चाहता हूँ घुप्प अंधेरो में, जहाँ मेरे सिवा कोई भी आसपास ना हो.. क्योंकि..क्योंकि अब डर लगता है लोगों से..उनके अंदर छुपे छल से..

कहानी : लोंग डिस्टेंस वालों की | Story Long Distance Walon Ki

क्या होता है हमारे साथ..पता है ! सालभर में अपनी वाली से सिर्फ एक-दो बार मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है. उसका इंतज़ार करते, मिस करते प्राण सूखने से लगते है.. तो दिल की आवाज सुन मोबाइल वाइब्रेट होता है.. वो अपनी फ़ोटो भेजती है और पूछती है "साहिब, कैसी लग हूँ मैं"? हार्ट जोर से बीट करने लगता है..और हलक से आवाज आती है "वाह..क्या लड़की पटाये हो तुम !" हम दस मिनट तक तो आंखे मोबाइल में डालकर निहारते रहते है अपनी स्वप्नसुंदरी को उन दस मिनट में दस हजार से भी ज्यादा ख्याल आते है फिर लास्ट की दो मिनट में मोबाइल की स्क्रीन को किस कर-कर के स्क्रीन का हुलिया बिगाड़ देते है.. खुद को राइटर कहते है फिर भी तमाम कोशिशों के बावजूद जवाब में सिर्फ रेड वाला हार्ट भेज पाते हैं !! : आयु ❤🌸

कविता : तुम | हिंदी कविता आशीष गेहलोत (आयु)

तुम्हारी बंद जुल्फों में छुपा गहरा सा राज है इस राज को आज़ाद कर दो ना तुम्हारी ललाट पर छिपका बिंदी का साज है इस साज को श्रृंगार कर दो ना कई मुद्दतों से हम मिले आज है इस आज को अनवरत कर दो ना

हँसी हँसी भांजै देखि | कवि पद्माकर | हिंदी कविता

पद्माकर का एक पद जो मेरा पसंदीदा है....पद हिमाचल के घर रचे गए विवाह समारोह में दूल्हा बनकर आये शिवजी की नग्नता का परिहास है...आप भी मजा लीजिये हँसी हँसी भांजै देखि दूलह दिगम्बर को पाहुनि जै आवै हिमाचल के उछाव में ! कहे पद्माकर यू सोकाहु सो कहे को कहा जोई जहाँ देखै सो हंसे है तांई राह में ! मगन भये ईस हंसे नगन महेश ठाढ़े और हंसे एऊ हंसी हंसी के उमाह में ! शीश पर गंगा हंसे भुजनि भुजंगा हंसे हास ही को दंगो भयो नंगा के विवाह में !!

लग जा गले

दिव्या की क्लास में ज्यादा शोर हो रहा था सो मैं बच्चों को चुप कराने में दिव्या की मदद करने के लिए उसकी क्लास में गया पर क्लास का नज़ारा कुछ ओर ही था दिव्या बच्चों से अन्तराक्षरी प्रतियोगिता करवा रही थी इसलिए उनके शोर से क्लास गूंज रही थी. मैंने चुपचाप क्लास के भीतर प्रवेश किया तभी दिव्या ने मुझे आते हुए देख लिया और उसके चेहरे पर मुसकुराहट फेल गयी..मैंने उसकी आँखों मे देखने की नाकाम कोशिश की पर उसने अपनी आँखें चुरा ली और बच्चों से बोली "शांत हो जाओ बच्चों..अब अर्पित सर आपको एक गीत सुनाएँगे.." उसने मेरी और चेहरा करके कहा "अर्पित प्लीज़ एक गीत गा दीजिये ना..मुझे ओर बच्चों को अच्छा लगेगा"  मैंने पहले तो मना कर दिया पर दिव्या के 2 बार रिकवेस्ट करने पर कहा "चलो ठीक हैं, कौनसा गाऊँ ?" "जो आपको गाना हो वो"  मैं सोच ही रहा था कि इतने में हमारे प्रिंसिपल सर भी क्लास में आ गए और पूछने लगे क्या चल रहा हैं? "सर, अन्तराक्षरी..और अर्पित सर अब एक गाना गाएंगे" दिव्या एक्साइटेड होकर बोली। "लग जा गले..गा लूं यह मेरा फेवरेट सोंग हैं"