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हिंदी कविता : अंधकार के आगोश में | आशीष महेंद्र | Short Hindi Poem | Writer Ashish Mahendra

टूटे दिल के टुकड़ों से निकली एक दर्द भरी आह सी कविता

अंधकार के आगोश में

अंधकार के आगोश में,
जब साया भी साथ छोड़ देता है..
ज्ञात तूणीर से निकला एक अज्ञात सा शब्द शर,
आकर मेरे सीने में चुभ जाता है,
ना निशां दिखता हैं,
ना लहू की धार फूटती हैं,
कोई सबूत नही होता उस दर्द का...
बस बेहद छटपटाहट होती है
शब्द नही होते उस अनुभूति को अभिव्यक्त करने को..
फिर मैं छिपा कर खुद को अंधेरो की आड़ में,
लेकर छलनी सा हॄदय और उसकी असह्य पीड़ा को..
एक कोने में दुबक जाता हूँ!
और वह दर्द फिर मूक आंखों से बहना शूरु होता है!
आह..! पता नही सुकून है या दर्द का अहसास..!जब 
और फिर घोर निद्रा मुझे अपने दामन में समा देती है..!
तब भी मेरे अतीत की स्मृतियाँ जो काले साये की तरह ख़ौफ़नाक है,
मेरा पीछा नहीं छोड़ती..!
दृष्टिपटल के सामने जाल बुन देती हैं उन काले किस्सों का,
जिन्होंने जीते जी कत्ल किया हैं मेरे वजूद का..!
अब भाग जाना चाहता हूँ इन उजालों से..
ताकि मेरा ही साया मेरे साथ ना रहें,
डूब जाना चाहता हूँ घुप्प अंधेरो में,
जहाँ मेरे सिवा कोई भी आसपास ना हो..
क्योंकि..क्योंकि अब डर लगता है लोगों से..उनके अंदर छुपे छल से.. कपट से.!!


-महेन्द्राशीष (महेंद्र & आशीष)

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