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हिंदी कविता : अनकही | Hindi Poem : Untold | Ashish & Mahendra

दिल की गहराइयों से..
जब कोई अनकही बात उफ़ान मारती है,
समस्त ह्रदय छलक आता हैं..
पर, मैं उसे दबा देना चाहता हूँ,
अपने टूटे हुए दिल के टुकड़ों के नीचे,
उन तार तार लम्हों को,
लेकिन..वे अमूर्त यादें..उफ़्फ़
जी तोड़ प्रयासों के बावजूद भी
विफल हो जाता हूँ,
वो बात शब्दों के रूप में,
किसी कागज पर बिखर कर,
किसी कविता के सांचे में ढल जाती हैं,
मुझे नही पता कविता क्या हैं..
लेकिन दर्द महसूस होता है प्रति हर्फ़ में,
फिर मैं उन सभी कागजों को जलाकर,
राख कर देना चाहता हूँ,
ताकि कभी उसके हाथ में ना जाएं ये पन्ने,
कभी अहसास ना मिले उसे उसी के दिये दर्द का,
बस मैं थोड़ा सा खुश होता कि,
इन सबसे बेखबर वो खुश हैं,
उसकी खुशी ही तो है सब कुछ,
उसे मेरे बिना मुस्कुराते हुए जीना देख कर..
थोड़ी तो तस्सली मिलती है,
कि आखिर खुश है वो,
मुझे पता है वो मुझे नही देखती..
और शायद देखना भी नही चाहती,
पर, मैं उसे दूर खड़ा मुस्कुराते देख,
उसकी मीठी मुस्कान से मुस्कुरा देता हूँ,
वो बेखबर होती है इन सब से और,
मुझे भी पता होता है वो मुस्कुराहट मेरे लिए नही है,
पता होता है मुझे कि मेरा दर्द मायने नही रखता..
उसके लिए..मगर..
उसकी खुशी तो सब कुछ है ना मेरी,
बस थोड़ा नकली सा खुश हो जाता हूँ,
उसे अपनी धुन में खुश देख कर..
थोड़ी गलतफहमी में डाल कर खुद को कि,
याद हूँ मैं उसे, झूठमूठ हँस लेता हूँ,
दरअसल शायद खुद की हालत पर ही,
मगर आस होती है कि..
इस से मेरी जलती हुई रूह को..
थोड़ा सुकून मिल पाए,
मगर, ये दिमाग है ना..
दिल को कहता है तू गफलत में है,
पर, दिल कहता है तू चुप रह..समझ नही है तुझे,
और अक्सर लड़ जाते है दिल और दिमाग दोनों,
आपस मे..
उस शख़्श के लिए जो..
जानकर भी अनजान सा रहता है..!!

-महेंद्राशीष (महेंद्र & आशीष)

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