क्यूँ उम्मीद हो मुझसे के फ़रियाद करूँ जिसे अब याद नहीं मैं क्यूँ उसे याद करूँ क्यूँ रहे मेरा किसी से कोई भी रब्त भला क्यूँ कहा जाऊँ कम्बख़्तों से कमबख़्त भला क्यूँ मुझसे हर दफ़ा वही एक सवाल हो ज़रूरी तो नहीं जो तेरा है वो मेरा हाल हो क्यूँ मेरे कमरे में कहीं भी रखी शराब ना हो क्यूँ आदमी मर जाए यहाँ मगर ख़राब ना हो क्यूँ हर एक ग़म का मेरे हिसाब लिया जाए चोरी बताई नहीं जाती भला क्या किया जाए क्यूँ होती नहीं कोई शक्ल ज़माने की यहाँ क्यूँ कोई हद नहीं होती आज़माने की यहाँ क्यूँ होती है घुटन कोई रोता क्यूँ है जो नामंज़ूर हो सिरे से वही होता क्यूँ है मुझसे मेरे नर्म दिल होने की आस ना कर मेरे किससे सुन ले मगर एहसास ना कर क्यूँ ये उजड़ा घर मेरा मैं आबाद करूँ जिसे अब याद नहीं मैं उसे क्यूँ याद करूँ Writer: Shubham Tripathi